अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो, अस्सी-नब्बे पूरे सौ…
अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो, अस्सी–नब्बे पूरे सौ….
3 सितंबर २०२२
जी हाँ कुछ ऐसी ही शुरुआत थीअपने संगिनी की। एक ज़िद, दृढ़ संकल्प, किन्तु ‘पैसा ना कौड़ी बीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी’ वाली बात अक्सर दिल को कचोटे जा रही थी।
समस्या गम्भीर थी, आँकड़ो को देखते–देखते जब भी प्रतिवर्ष २.३ करोड़ बच्चियों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर करने वाली समस्या पर नज़र जाती, तो इस सदी में अपने देश की ये हालत पर स्वयं को धिक्कारता रहा। अनवरत चली आ रही कुंठाओं से ग्रसित समाज का भुगतान अपनी बच्चियाँ ही क्यूँ भुगते?
मासिक धर्म के समस्याओं के प्रभावों के अध्ययन करने के पश्चात्, एक ठोस हल ढूँढने में लगा रहा। सरकार के जन औषधि केंद्र में इसकी उचित व्यवस्था होते हुये भी, सैनिटेरी नैप्किन का ग्रामीण महिलाओं तक ना पहुँच पाना एक दुर्भाग्य है। फिर वेण्डिंग मशीन वा इन्सिनरेटर को उनके आँगन तक ले जाने का मन बनाया ताकि मात्र एक ही रुपये में उन्हें स्वच्छ माहवारी का लाभ मिल सके। ज़रूरत थी एक प्रगतिशील कम्पनी की जो कम दामों में ये उपलब्ध करा सके। निरंतर प्रयास के पश्चात् एक ऐसे ही संगठन को चुना जो इस पवित्र मुहिम को महसूस कर हमें मशीन समय पर उपलब्ध करा सके। पाँच गावों में इस अवधारणा को पहले परखा गया और फिर पाँच साल का लेखा–जोखा तैय्यार किया गया। ज़रूरतें अक्सर मन भारी कर देता है किन्तु लगभग ७५ लाख की अनुदान–राशि ने तो हमें झकझोर दिया।
बस निकल पड़े ‘भवति भिक्षाम देहि’ यात्रा पर, शायद कोई महर्षि मुद्गल अपनी तप से उठ विनीत भाव से झोली भर दे। अंतर मात्र इतना कि मैं ना तो दुर्वासा जैसे परीक्षा ले रहा था। अपनी झोली गहरी थी, लेकिन सौभाग्यवश अपने ही कम्पनी Reflexis के वरिष्ट अधिकारियों के पूर्ण मनोयोग भाव से ३० लाख के आर्थिक अनुदान से इस पुनीत यात्रा को एक सम्बल मिला। नोबा परिवार के बंधुगण भला ऐसे नेक काज को कैसे अनदेखी करते। बस निकल पड़ी अपनी गाड़ी – एक के बाद एक अपने लोग यथायोग्य अनुदान देते गये। भारतीय स्टेट बैंक के अनुदान वरदान साबित हुयी, देखते–देखते योजनाबद्ध लग गये ५० गावों में वेण्डिंग मशीन और इन्सिनरेटर विश्व मासिक धर्म दिवस २८ मई को।
झोली फैली रही किन्तु ठन–ठन गोपाल वाली हालात बरकरार रही, ७५ लाख मानों कुंडली मार के बैठी थी। तभी अवतरित हुये हमारे रमेश जी, मानों भगवान ने उन्हें समय पर एक स्वप्न दिखाया हो। पलक झपकते ही लगभग बीस लाख अनुदान जुटाने में सक्षम रमेश जी हमारे मुहिम को एक अपरिकल्पित गति दे गये। अंग्रेजों के बीच रहते हुए भी उनका ‘थैंक यू’ अपना ना पाया, बड़ा ही ओछा सा लगता है, इसलिये उचित होगा कि रमेश जी के सामयिक प्रयासों को हम महसूस कर सकें।
आज २ सितम्बर २०२२ को १०२ गावों तक की ये यात्रा संतोषदायी है। संगिनी कोर ग्रूप – (अजित, सुमित, विकास, मनीष और कृशानु), नोबा जीएसआर के स्वयमसेवकों और सदस्यों, सभी नेतरहाट पूर्ववर्ती छात्रों के साथ–साथ समस्त अनुदायियों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। संघर्ष है किंतु प्रण के समक्ष कमजोर है।
यात्रा जारी है, साल के अंत तक दुगुना (२०० गाँव) करना है और फिर अपने साथी संगठनों के सहयोग से देश के सारे ४.६ करोड़ ग्रामीण महिलाओं तक इस सेवा को उपलब्ध कराना है। ?
संगिनी ओम प्रकाश चौधरी की परिकल्पना है जिससे अधिक से अधिक ग्रामीण महिलाओं और बच्चियों के आँगन क़रीब मात्र १ रूपये में पैड्ज़ उपलब्ध करा सामाजिक कुप्रथाओं से जकड़ी माहवारी अस्वच्छ्ता से उन्हें निजात मिल सकें। संगिनी के प्रोजेक्ट लीड में परियोजना रणनीति और वित्तीय अवधारणा की ज़िम्मेवारी ओम प्रकाश जी की है।
ज़मीन से सदा जुड़े सुमित शशि के सशक्त कंधों पर संगिनी के सफल कार्यान्वयन की पूरी ज़िम्मेवारी है। संगिनी संगठन को एक ठोस प्रारूप देने के साथ–साथ योजनाबद्ध तरीक़े से समयानुसार मशीन गावों में लगता जाये और ग्रामीण महिलायें कम दामों में अपने आँगन समीप पैड्ज़ की अनवरत उपलब्धता से लाभान्वित होती रहें, इसी उद्देश्य से संगिनी के दो डेलिवेरी केंद्रों की परिकल्पना की गयी – पटना और राँची जो बिहार और झारखंड राज्यों में इस मुहिम को गावों तक पहुँचा सकें। अजित चौधरी झारखंड राज्य और सुमित बिहार राज्य का कार्यभार सम्भाले हुये हैं।
‘नोबा ज्ञानकोश’ संज्ञा से प्रसिद्ध विकास रंजन संगिनी के व्यवस्थित विपणन कार्य के साथ–साथ अगले चरण के रणनीति की ज़िम्मेवारी सम्भाले हैं। समुचित विज्ञापन से अनगिनत द्वार खुलते जाते हैं – अनुदायियों के अतिरिक्त, स्वयं सेवकों और प्रभावशाली व्यक्तियों का इस मुहिम से जुड़ना अतिआवश्यक है।
वित्तीय लेखा–जोखा का अमूल्यवान भार मनीष कांत के सुपुर्द है।