प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति। सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
21 अक्तूबर 2022
आज शुभ दिन है, भले हम चाणक्य की उक्त पंक्तियों पर पूर्णतः खड़े उतरे हों या ना हों, सफलता के इस पायदान को भोगने का तो हक़ नोबा जीएसआर का है।
चंद ही दिनों पहले की बात है जब मैं, पूरी सादगी, तन्मयता, सूझबूझ और निश्छल भाव से किये जा रहे नोबा जीएसआर के कार्यों को दूर से ही सराहता रहा। सबसे अच्छी बात ये लगी कि यहाँ सब समान है, ना कोई सीनियर और ना ही जूनियर। विचारों का सही मूल्यांकन भी तब ही संभव है जब हम अपने उम्र और अहं को परे रख दें और सामूहिक अथवा प्रजातांत्रिक निर्णय को अपनायें।
आरसी जी के मनभावन लहजे में एक अलग अपनत्व था। सुमित शशि के जोशीले शब्द तो मानों किसी राजा–महाराजा के क़िले फ़तह जैसी थी। गौतम की फटकार चुभती ज़रूर थी किन्तु उसकी सत्यता को नकारना भी असंभव था। विकास रंजन की जान–पहचान और कार्य–पद्धति बिलकुल अपनी जैसी लगी। जवाहर की नपी–तुली बातें और उसकी दूरगामी सोच का शुरू से क़ायल था। अंग्रेज़ी में स्वतः माहिर होते हुये भी हिन्दी के प्रयोग पर ज़ोर देने वाले आलोक के सुलझे व्यक्तित्व भी अच्छा लगता गया, शायद ये भी एक कारण है जो मैं हिन्दी में लिख रहा हूँ। अल्प शब्दों और बड़ी सोच वाले सचिन झा से इतना प्रभावित था कि उसे इस मुहिम को आगे ले जाने की गुज़ारिश करता रहा। फिर एक दिन श्रृष्टि ने श्रृष्टि रचाया और नोबा जीएसआर ने उसे एक दिशा दे मनोयोग से उसे भरपूर सींचना शुरू किया।
एक अजब सा सामंजस्य है – कुछ दूरगामी, कुछ योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ने वाले, तो कुछ पवनसुत हनुमान जैसे द्रोणागिरी पर्वत ही उठा लेने वाले, किन्तु उद्देश्य सदा एक ही। एक दूसरे के ताक़त का सही उपयोग से ये संस्था सदा अग्रसरित रहेगा।। कष्ट मात्र एक था कि मेरे उम्मीद के विपरीत बहुत थोड़े ही सेवा–निवृत नोबा बंधु वहाँ थे। सोचा था वानप्रस्थ आश्रम वाले समाज के प्रति ‘त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।’ के भाव को अपना चुके होंगे। अर्थ का अभाव हमारे विचारों को रोक नहीं सकता, मस्तिष्क से हम भरपूर सक्षम हैं, जीवन से अर्जित अनुभवों का भंडार है हमारे पास जिसका सही उपयोग समय रहते ही संभव है। अर्थ तो सदा से सही विचारों और उसे कार्यान्वयन के प्रयासों का अधीन रहा है। संगिनी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। आग्रह है सभी सेवा–निवृत अग्रजों से कि नोबा जीएसआर से जुड़ें और अपने लंबे समय से अर्जित मूल्यों से समाज का भला करें। कौन जाने कब और कहाँ रमा के ईश की कृपा हो जाये और हम विजय की ओर स्वतः चल पड़ें। नोबा जीएसआर आज एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ आईडिया की महत्ता और उसका योजनाबद्ध कार्यान्वयन, अनुदान संचयन से कहीं कम नहीं है।
अपने संकल्प के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता का ही ये नतीजा है कि आज हम सब अपने मूल उद्देश्य को पूरा कर पाये हैं। सारे अनुदायियों के साथ–साथ सारे संगियों का हृदय से आभार। ख़ुशी इस बात की है कि ये मुहिम चल पड़ा – अब इसे संजो कर रखने के साथ–साथ 4.6 करोड़ महिलाओं तक इसे ले जाना है।